भीष्म पितामह की सम्पूर्ण कहानी *Bhishma Pitamah * विचित्र वीर हनुमान माला मंत्र * Vichitra Veer Hanuman
भीष्म
पितामह – सम्पूर्ण कहानी – पूर्वजन्म से मृत्यु तक
महाभारत
एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें कई नायक हैं। उनमें से एक नायक भीष्म पितामह भी हैं। सभी लोग जानते हैं कि भीष्म पितामह ने महाभारत की लड़ाई में कौरवों की ओर से युद्ध किया था, लेकिन बहुत से लोग उनके जीवन से जुड़ी बड़ी घटनाओं के बारे में नहीं जानते जैसे- भीष्म पितामह पूर्व जन्म में कौन थे, किसके श्राप के कारण उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। उनके गुरु कौन थे और उन्हें क्यों अपने ही गुरु से युद्ध करना पड़ा? आज हम आप सब को इस लेख में भीष्म पितामह के पूर्वजन्म से लेकर उनकी इच्छा मृत्यु तक की सम्पूर्ण कथा बताएँगे।
पूर्व
जन्म में वसु थे भीष्म
महाभारत
के आदि पर्व के अनुसार एक बार पृथु आदि वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे। वहां वसिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था। एक वसु पत्नी की दृष्टि ऋषि वसिष्ठ के आश्रम में बंधी नंदिनी नामक गाय पर पड़ गई। उसने उसे अपने पति द्यौ नामक वसु को दिखाया तथा कहा कि वह यह गाय अपनी सखियों के लिए चाहती है।
पत्नी
की बात मानकर द्यौ ने अपने भाइयों के साथ उस गाय का हरण कर लिया। जब महर्षि वसिष्ठ अपने आश्रम आए तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से सारी बात जान ली। वसुओं के इस कार्य से क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। जब सभी वसु ऋषि वसिष्ठ से क्षमा मांगने आए।
तब
ऋषि ने कहा कि तुम सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन इस द्यौ नामक वसु को अपने कर्म भोगने के लिए बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा। महाभारत के अनुसार द्यौ नामक वसु ने गंगापुत्र भीष्म के रूप में जन्म लिया था। श्राप के प्रभाव से वे लंबे समय तक पृथ्वी पर रहे तथा अंत में इच्छामृत्यु से प्राण त्यागे।
कैसे
हुआ भीष्म पितामह का जन्म
भीष्म
पितामह के पिता का नाम राजा शांतनु था। एक बार शांतनु शिकार खेलते-खेलते गंगातट पर जा पहुंचे। उन्होंने वहां एक परम सुंदर स्त्री देखी। उसके रूप को देखकर शांतनु उस पर मोहित हो गए। शांतनु ने उसका परिचय पूछते हुए उसे अपनी पत्नी बनने को कहा। उस स्त्री ने इसकी स्वीकृति दे दी, लेकिन एक शर्त रखी कि आप कभी भी मुझे किसी भी काम के लिए रोकेंगे नहीं अन्यथा उसी पल मैं आपको छोड़कर चली जाऊंगी। शांतनु ने यह शर्त स्वीकार कर ली तथा उस स्त्री से विवाह कर लिया।
इस
प्रकार दोनों का जीवन सुखपूर्वक बीतने लगा। समय बीतने पर शांतनु के यहां सात पुत्रों ने जन्म लिया, लेकिन सभी पुत्रों को उस स्त्री ने गंगा नदी में डाल दिया। शांतनु यह देखकर भी कुछ नहीं कर पाएं क्योंकि उन्हें डर था कि यदि मैंने इससे इसका कारण पूछा तो यह मुझे छोड़कर चली जाएगी। आठवां पुत्र होने पर जब वह स्त्री उसे भी गंगा में डालने लगी तो शांतनु ने उसे रोका और पूछा कि वह यह क्यों कर रही है?
उस
स्त्री ने बताया कि मैं देवनदी गंगा हूं तथा जिन पुत्रों को मैंने नदी में डाला था वे सभी वसु थे जिन्हें वसिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था। उन्हें मुक्त करने लिए ही मैंने उन्हें नदी में प्रवाहित किया। आपने शर्त न मानते हुए मुझे रोका। इसलिए मैं अब जा रही हूं। ऐसा कहकर गंगा शांतनु के आठवें पुत्र को लेकर अपने साथ चली गई।
Bhishma Ashtami
19th
February 2021
Friday / शुक्रवार
देवव्रत
था भीष्म का असली नाम
गंगा
जब शांतनु के आठवे पुत्र को साथ लेकर चली गई तो राजा शांतनु बहुत उदास रहने लगे। इस तरह थोड़ा और समय बीता। शांतनु एक दिन गंगा नदी के तट पर घूम रहे थे। वहां उन्होंने देखा कि गंगा में बहुत थोड़ा जल रह गया है और वह भी प्रवाहित नहीं हो रहा है। इस रहस्य का पता लगाने जब शांतनु आगे गए तो उन्होंने देखा कि एक सुंदर व दिव्य युवक अस्त्रों का अभ्यास कर रहा है और उसने अपने बाणों के प्रभाव से गंगा की धारा रोक दी है।
यह
दृश्य देखकर शांतनु को बड़ा आश्चर्य हुआ। तभी वहां शांतनु की पत्नी गंगा प्रकट हुई और उन्होंने बताया कि यह युवक आपका आठवां पुत्र है। इसका नाम देवव्रत है। इसने वसिष्ठ ऋषि से वेदों का अध्ययन किया है तथा परशुरामजी से इसने समस्त प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को चलाने की कला सीखी है। यह श्रेष्ठ धनुर्धर है तथा इंद्र के समान इसका तेज है।
देवव्रत
का परिचय देकर गंगा उसे शांतनु को सौंपकर चली गई। शांतनु देवव्रत को लेकर अपनी राजधानी में लेकर आए तथा शीघ्र ही उसे युवराज बना दिया। गंगापुत्र देवव्रत ने अपनी व्यवहारकुशलता के कारण शीघ्र प्रजा को अपना हितैषी बना लिया।
इसलिए
देवव्रत का नाम पड़ा भीष्म
एक
दिन राजा शांतनु यमुना नदी के तट पर घूम कर रहे थे। तभी उन्हें वहां एक सुंदर युवती दिखाई दी। परिचय पूछने पर उसने स्वयं को निषाद कन्या सत्यवती बताया। उसके रूप को देखकर शांतनु उस पर मोहित हो गए तथा उसके पिता के पास जाकर विवाह का प्रस्ताव रखा। तब उस युवती के पिता ने शर्त रखी कि यदि मेरी कन्या से उत्पन्न संतान ही आपके राज्य की उत्तराधिकारी हो तो मैं इसका विवाह आपके साथ करने को तैयार हूं।
यह
सुनकर शांतनु ने निषादराज को इंकार कर दिया क्योंकि वे पहले ही देवव्रत को युवराज बना चुके थे। इस घटना के बाद राजा शांतनु चुप से रहने लगे। देवव्रत ने इसका कारण जानना चाहा तो शांतनु ने कुछ नहीं बताया। तब देवव्रत ने शांतनु के मंत्री से पूरी बात जान ली तथा स्वयं निषादराज के पास जाकर पिता शांतनु के लिए उस युवती की मांग की। निषादराज ने देवव्रत के सामने भी वही शर्त रखी। तब देवव्रत ने प्रतिज्ञा लेकर कहा कि आपकी पुत्री के गर्भ से उत्पन्न महाराज शांतनु की संतान ही राज्य की उत्तराधिकारी होगी।
तब
निषादराज ने कहा यदि तुम्हारी संतान ने मेरी पुत्री की संतान को मारकर राज्य प्राप्त कर लिया तो क्या होगा? तब देवव्रत ने सबके सामने अखण्ड ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली तथा सत्यवती को ले जाकर अपने पिता को सौंप दिया। तब पिता शांतनु ने देवव्रत को इच्छामृत्यु का वरदान दिया। देवव्रत की इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम भीष्म पड़ा।
भीष्म
ने किया था काशी की राजकुमारियों का हरण
भरतवंशी
राजा शांतनु को पत्नी सत्यवती से दो पुत्र हुए- चित्रांगद और विचित्रवीर्य। दोनों ही बड़े होनहार व पराक्रमी थे। अभी चित्रांगद ने युवावस्था में प्रवेश भी नहीं किया था कि राजा शांतनु स्वर्गवासी हो गए। तब भीष्म ने माता सत्यवती की सम्मति से चित्रांगद को राजगद्दी पर बैठाया। लेकिन कुछ समय तक राज करने के बाद ही उसी के नाम के गंधर्वराज चित्रांगद ने उसका वध कर दिया।
तब
भीष्म में विचित्रवीर्य को राजा बनाया। जब भीष्म ने देखा कि विचित्रवीर्य युवा हो चुका है तो उन्होंने उसका विवाह करने का विचार किया। उन्हीं दिनों काशी के राजा की तीन कन्याओं का स्वयंवर भी हो रहा था। लेकिन काशी नरेश ने द्वेषतापूर्वक हस्तिनापुर को न्योता नहीं दिया। क्रोधित होकर भीष्म अकेले ही स्वयंवर में गए और वहां उपस्थित सभी राजाओं व काशी नरेश को हराकर उनकी तीनों कन्याओं अंबा, अंबिका व अंबालिका को हर लाए।
तब
काशी नरेश की बड़ी पुत्री अंबा ने भीष्म से कहा कि वह मन ही मन में राजा शाल्व को अपना पति मान चुकी है। यह बात जानकर भीष्म ने अंबा को उसके इच्छानुसार जाने की अनुमति दे दी तथा शेष दो कन्याओं का विवाह विचित्रवीर्य से कर दिया।
भीष्म
ने क्यों किया अपने गुरु से युद्ध
महाभारत
के अनुसार भीष्म काशी में हो रहे स्वयंवर से काशीराज की पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के लिए उठा लाए थे। तब अंबा ने भीष्म को बताया कि मन ही मन किसी और का अपना पति मान चुकी है तब भीष्म ने उसे ससम्मान छोड़ दिया, लेकिन हरण कर लिए जाने पर उसने अंबा को अस्वीकार कर दिया। तब अंबा भीष्म के गुरु परशुराम के पास पहुंची और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई।
अंबा
की बात सुनकर भगवान परशुराम ने भीष्म को उससे विवाह करने के लिए कहा, लेकिन ब्रह्मचारी होने के कारण भीष्म ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। तब परशुराम और भीष्म में भीषण युद्ध हुआ और अंत में अपने पितरों की बात मानकर भगवान परशुराम ने अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार इस युद्ध में न किसी की हार हुई न किसी की जीत। अगले जन्म में अंबा ने शिखंडी के रूप में जन्म लिया और भीष्म की मृत्यु का कारण बनी।
भीष्म
ने दिया था युधिष्ठिर को विजय होने का आशीर्वाद
जिस
समय कौरवों और पांडवों में युद्ध शुरु होने वाला था। उसी समय धर्मराज युधिष्ठिर अपने रथ से उतर कर कौरव सेना की ओर चल दिए। कौरव सेना में जाकर युधिष्ठिर ने सबसे पहले भीष्म पितामह से आशीर्वाद लिया और युद्ध करने के लिए उनसे आज्ञा मांगी। तब भीष्म ने कहा कि- यदि तुम इस समय मेरे पास न आए होते तो मैं तुम्हारी पराजय के लिए तुम्हें श्राप दे देता। लेकिन अब मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं।
तुम
युद्ध करो, तुम्हारी ही विजय होगी। तब युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से कहा कि- आपको तो युद्ध में कोई भी जीत नहीं सकता तो हम युद्ध कैसे जीत पाएंगे। भीष्म ने कहा- संग्राम भूमि में युद्ध करते समय मुझे जीत सके, ऐसी तो मुझे कोई दिखाई नहीं देता। मेरी मृत्यु का भी कोई निश्चित समय नहीं है। इसलिए तुम किसी दूसरे समय आकर मुझसे मिलना।
भीष्म
ने दिलाया था श्रीकृष्ण को क्रोध
जब
पांडवों व कौरवों का युद्ध प्रारंभ हुआ, उस समय कौरवों के सेनापति भीष्म पितामह ही थे। युद्ध के तीसरे दिन भीष्म पितामह ने पांडवों की सेना पर भयंकर बाण वर्षा कर भयभीत कर दिया। यह देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वह भीष्म पितामह से युद्ध करे। अर्जुन और भीष्म पितामह में भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन थोड़ी देर बाद अर्जुन युद्ध में ढीले पड़ गए और पांडवों की सेना में भगदड़ मच गई। यह देखकर श्रीकृष्ण को बहुत क्रोध आया और वे रथ से उतर गए।
श्रीकृष्ण
अपने हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर बड़ी तेजी से भीष्म की ओर झपटे। श्रीकृष्ण के इस रूप को देखकर भीष्म बिल्कुल भी भयभीत नहीं हुए। भगवान श्रीकृष्ण को ऐसा करते देख अर्जुन रोकने के लिए उनके पीछे दौड़े। अर्जुन ने श्रीकृष्ण को आश्वस्त किया कि अब मैं युद्ध में ढिलाई नहीं करुंगा आप युद्ध मत कीजिए। अर्जुन की बात सुनकर श्रीकृष्ण शांत हो गए और पुन: अर्जुन का रथ हांकने लगे।
भीष्म
ने स्वयं बताया था अपनी मृत्यु का रहस्य
महाभारत
के युद्ध में भीष्म पितामह ने पांडव सेना में भयंकर मारकाट मचाई। पांडव भी भीष्म का यह रूप देखकर डर गए। तब उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से भीष्म पितामह को हराने का उपाय पूछा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि यह उपाय तो स्वयं भीष्म ही बता सकते हैं। तब पांचों पांडव भगवान श्रीकृष्ण के साथ भीष्म पितामह से मिलने गए और उनसे पूछा कि आपको युद्ध में कैसे हराया जा सकता है।
तब
भीष्म ने बताया कि तुम्हारी सेना में जो शिखंडी है, वह पहले एक स्त्री था, बाद में पुरुष बना। अर्जुन यदि शिखंडी को आगे करके मुझ पर बाणों का प्रहार करें, वह जब मेरे सामने होगा तो मैं बाण नहीं चलाऊंगा। इस मौके का फायदा उठाकर अर्जुन मुझे बाणों से घायल कर दें। इस प्रकार मुझ पर विजय प्राप्त करने के बाद ही तुम यह युद्ध जीत सकते हो।
ऐसे
हुई भीष्म पितामह की पराजय
महाभारत
युद्ध के दसवें दिन भी भीष्म पितामह ने पांडवों की सेना में भयंकर मारकाट मचाई। यह देखकर युधिष्ठिर ने अर्जुन से भीष्म पितामह को रोकने के लिए कहा। अर्जुन शिखंडी को आगे करके भीष्म से युद्ध करने पहुंचे। शिखंडी को देखकर भीष्म ने अर्जुन पर बाण नहीं चलाए और अर्जुन अपने तीखे बाणों से भीष्म पितामह को बींधने लगे।
इस
प्रकार बाणों से छलनी होकर भीष्म पितामह सूर्यास्त के समय अपने रथ से गिर गए। उस समय उनका मस्तक पूर्व दिशा की ओर था। उन्होंने देखा कि इस समय सूर्य अभी दक्षिणायन में है, अभी मृत्यु का उचित समय नही हैं, इसलिए उन्होंने उस समय अपने प्राणों का त्याग नहीं किया।
युधिष्ठिर
को दिया धर्म ज्ञान
महाभारत
युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि इस समय पितामह भीष्म बाणों की शैय्या पर हैं। आप उनके पास चलकर उनके चरणों को प्रणाम कीजिए और आपके मन में जितने भी संदेह हो, उनके बारे में पूछ लीजिए। श्रीकृष्ण की बात मानकर युधिष्ठिर भीष्म पितामह के पास गए और उनसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान प्राप्त किया। युधिष्ठिर को ज्ञान देने के बाद भीष्म पितामह ने उनसे कहा कि अब तुम जाकर न्यायपूर्वक शासन करो, जब सूर्य उत्तरायण हो जाए, उस समय फिर मेरे पास आना।
ऐसे
त्यागे भीष्म पितामह ने अपने प्राण
जब सूर्यदेव उत्तरायण हो गए तब युधिष्ठिर सहित सभी लोग भीष्म पितामह के पास पहुंचे। उन्हें देखकर भीष्म पितामह ने कहा कि इन तीखे बाणों पर शयन करते हुए मुझे 58 दिन हो गए हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहा कि अब मैं प्राणों का त्याग करना चाहता हूं। ऐसा कहकर भीष्मजी कुछ देर तक चुपचाप रहे। इसके बाद वे मन सहित प्राणवायु को क्रमश: भिन्न-भिन्न धारणाओं में स्थापित करने लगे।
भीष्मजी
का प्राण उनके जिस अंग को त्यागकर ऊपर उठता था, उस अंग के बाण अपने आप निकल जाते और उनका घाव भी भर जाता। भीष्मजी ने अपने देह के सभी द्वारों को बंद करके प्राण को सब ओर से रोक लिया, इसलिए वह उनका मस्तक (ब्रह्म रंध्र) फोड़कर आकाश में चला गया। इस प्रकार महात्मा भीष्म के प्राण आकाश में विलीन हो गए।
https://en.wikipedia.org/wiki/Bhishma
https://en.wikipedia.org/wiki/Shantanu
https://en.wikipedia.org/wiki/Ganga_in_Hinduism
https://en.wikipedia.org/wiki/Kuru_Kingdom
https://en.wikipedia.org/wiki/Satyavati
https://en.wikipedia.org/wiki/Vyasa
https://en.wikipedia.org/wiki/Ambika_(Mahabharata)
https://en.wikipedia.org/wiki/Ambalika
https://en.wikipedia.org/wiki/Dhritarashtra
https://en.wikipedia.org/wiki/Pandu
https://en.wikipedia.org/wiki/Vidura
Vichitravirya had an elder
brother named Chitrāngada, whom his half-brother Bhishma placed on the throne
of the kingdom of the Kurus after Shantanu's death; he was a mighty warrior but
the king of the Gandharvas defeated and killed him at the end of a long battle.
Thereafter, Bhishma consecrated Vichitravirya, who was still a child, to the
kingdom.
When he had reached manhood,
Bhishma married him to Ambika and Ambalika, beautiful daughters of the king of
Kasi Kashya. Vichitravirya loved his wives very much and was adored by them.
But after seven years he fell ill of consumption and could not be healed
despite the efforts of his friends and physicians.
Like his brother Chitrangada, he died
childless. Subsequently, through a Niyoga relationship with his half-brother
sage Vyasa, his wives and a maid gave birth to three children, namely
Dhritarashtra, Pandu and Vidura.
https://en.wikipedia.org/wiki/Satyavati
Vichitravirya
*
Family : Shantanu (father) Satyavati (mother) Chitrangada (brother) Bhishma (half-brother)
*
Spouse : Ambika and Ambalika
*
Children : Dhritrashtra and Pandu (acknowledged children fathered by
Vyasa)
https://en.wikipedia.org/wiki/Niyoga
https://en.wikipedia.org/wiki/Vichitravirya
https://en.wikipedia.org/wiki/Vyasa
विचित्र वीर हनुमान माला मंत्र * Vichitra Veer Hanuman
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Extremely powerful vichitra veer hanuman mala mantra Sidhhi
In this post i will share the detailed procedure to attain sidhhi over extremely powerful and intensed vichitra veer hanuman mala mantra.Vichitra veer is the most fearsome form of panchamukhi hanuman.This stotra is extremely extremely powerful and very very intense.Usuallly mala mantras are chanted continuously in a single breath without taking break,it is said that by chanting in this procedure the sadhak will devolop strong throat mmuscles and his vocal chords will become very strong.Vichitra veer hanuman mala mantra is commonly chanted to get rid of their enemies and is used for attraction purposes,but many do not know that this mantra is a powerful karya sidhhi mantra and also can be used to destroy most malefic planetary effects.
This mantra is also used to achieve various sidhhis like vayu gamana
sidhhi means ability to fly in air etc.Now i will provide the complete
procedure to attain mastery over this mantra.
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Procedure to attain sidhhi over vichitra veer hanuman mala
mantra:-
Start this sadhana on first tuesday of shukla paksha or any
other auspicious hindu festival day.
One should perform this sadhana during brahma muhurt and he
must use only kush or red velvet aasan.
Keep a big proper chowki in front you of and keep veer
hanuman idol on it.Remember only keep veer hanuman idol on it,veer hanuman
means left facing hanuman carrying mountain.
Take sankalp that you are performing this sadhana to get
sidhhi over mala mantra.
Chant this mantra 1188 times means 11 mala daily using
rudraksha or red chandan rosary for 11 days to get sidhhi over mala mantra.
After mantra sadhana perform ahuti 108 times using guggul.
While chanting viniyoga he should take some rice,water and
some red flowers in his hands and after chanting viniyoga he should offer it to
the ground .Take care that the water,rice and flowers should not be stepped by
anyone or else it will be an insult made to hanuman,so i suggest that one can
offer that to copper plate and later can be thrown to root of tulsi or any
sacred tree or plant.
One can chant kshama prarthana after chanting the mantra to
ask forgiveness of hanuman if any mistake is done while doing sadhana or he can
mentally ask forgiveness of hanuman.
In the place of sarvajanam he should insert the name your
enemy whom you want to eradicate from your life or the person whom you want to
attract.
After gaining sidhhi over this mala mantra all enemies of
sadhak who are harassing him will get destroyed,everyone will be attracted
towards him.The benefits of this mantra are huge,it will cure impossible
diseases,and one can fullfill the most impossible task easily no matter how
tough it is by the grace of this mantra.The sadhak will become fearless,no body
can harm him in any aspects.This mala
mantra can be used for any wish in the world.And i again repeat that this
mantra is very very intense and potent and it is having the power to wipe out
the enemy from the earth,so dont use this mantra to destroy enemy for silly
things or use this mantra to attract women for lustfull purposes else you will
surely face the wrath of hanuman.If one dont want to attain sidhhi over this
mantra they can chant this mantra 111 times daily during brahma muhurt or dusk
to overcome their problems.Even chanting 111 times for one day is enough to get
rid of their enemies and to attract anyone,such is the power of this mala
mantra.I will provide the specific procedure to chant in the future.
Vichitra veer hanuman mala mantra:
श्रीगणेशाय
नमः ।
ॐ
अस्य श्रीविचित्रवीरहनुमन्मालामन्त्रस्य
श्रीरामचन्द्रो
भगवानृषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, श्रीविचित्रवीरहनुमान्
देवता, ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे
मालामन्त्र
जपे विनियोगः ।
अथ करन्यासः ।
ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां
नमः ।
अथ अङ्गन्यासः |
ॐ ह्रां हृदयाय नमः ।
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ ह्रूं शिखायै वषट् ।
ॐ ह्रैं कवचाय हुम् ।
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ ह्रः अस्त्राय फट् ।
अथ ध्यानम् ।
वामे
करे वैरवहं वहन्तं शैलं परे श्रृङ्खलमालयाढ्यम्
।
दधानमाध्मातसुवर्णवर्णं
भजे ज्वलत्कुण्डलमाञ्जनेयम्
॥
ॐ
नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते
प्रलयकालानलप्रभाज्वलत्प्रतापवज्रदेहाय
अञ्जनीगर्भसम्भूताय
प्रकटविक्रमवीरदैत्य
दानवयक्षराक्षसग्रहबन्धनाय
भूतग्रह प्रेतग्रहपिशाचग्रहशाकिनीग्रहडाकिनीग्रह-
काकिनीग्रहकामिनीग्रहब्रह्मग्रहब्रह्मराक्षसग्रह चोरग्रहबन्धनाय एहि एहि
आगच्छागच्छ
आवेशयावेशय
मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर सत्यं कथय कथय व्याघ्रमुखं बन्धय बन्धय सर्पमुखं बन्धय बन्धय राजमुखं बन्धय बन्धय सभामुखं बन्धय बन्धय शत्रुमुखं बन्धय बन्धय सर्वमुखं बन्धय बन्धय लङ्काप्रासादभञ्जन
सर्वजनं मे वशमानय वशमानय श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षय आकर्षय शत्रून् मर्दय मर्दय मारय मारय चूर्णय चूर्णय खे खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया
प्रज्ञया मम कार्यसिद्धि कुरु कुरु मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा ॥
ॐ
ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् श्रीविचित्रवीरहनुमते
मम सर्वशत्रून् भस्मी कुरु कुरु हन हन हुं फट् स्वाहा ॥
Note:-Women cannot perform this sadhana,since this mantra is
atributed to veer form of hanuman and involves the procedure of
karanyasa,anganyasa etc.Through karanyasa and anganyasa hanuman will enter the
sadhak's body,since he is a brahmachari he cannot enter a female body,hence
females must stay away from not only this mantra but from any mantra which is
atrributed to veer form of hanuman.
इस
मन्त्र से आप अपने बड़े-से-बड़े शत्रु को धुल चटा सकते हैं । आपको करना ये है, कि मंगलवार अथवा शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाकर इस मन्त्र का जप अधिक-से-अधिक करना होगा ।।
अथ
श्रीविचित्रवीर
हनुमान मालामन्त्रः ।। Shri Vichitra
Virya Hanumana Mantra Mala.
श्रीगणेशाय
नमः ।।
अथ
विनियोगः –
ॐ अस्य श्रीविचित्रवीरहनुमन्मालामन्त्रस्य
। श्रीरामचन्द्रो भगवानृषिः । अनुष्टुप् छन्दः । श्रीविचित्रवीरहनुमान्
देवता । ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे
मालामन्त्र
जपे विनियोगः ।।
अथ
करन्यासः-
ॐ
ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ
ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ
ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ
ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ
ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां
नमः ।।
अथ
अङ्गन्यासः-
ॐ
ह्रां हृदयाय नमः ।
ॐ
ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ
ह्रूं शिखायै वषट् ।
ॐ
ह्रैं कवचाय हुम् ।
ॐ
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ
ह्रः अस्त्राय फट् ।।
।।
अथ ध्यानम् ।।
वामे
करे वैरवहं वहन्तं शैलं परे श्रृङ्खलमालयाढ्यम्
।
दधानमाध्मातसुवर्णवर्णं
भजे ज्वलत्कुण्डलमाञ्जनेयम्
।।
ॐ
नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते
प्रलयकालानलप्रभाज्वलत्प्रतापवज्रदेहाय
अञ्जनीगर्भसम्भूताय
प्रकटविक्रमवीरदैत्य-दानवयक्षराक्षसग्रहबन्धनाय
भूतग्रह-प्रेतग्रहपिशाचग्रहशाकिनीग्रहडाकिनीग्रह-काकिनीग्रहकामिनीग्रहब्रह्मग्रहब्रह्मराक्षसग्रह-चोरग्रहबन्धनाय एहि एहि आगच्छागच्छ-आवेशयावेशय मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर सत्यं कथय कथय व्याघ्रमुखं बन्धय बन्धय सर्पमुखं बन्धय बन्धय राजमुखं बन्धय बन्धय सभामुखं बन्धय बन्धय शत्रुमुखं बन्धय बन्धय सर्वमुखं बन्धय बन्धय लङ्काप्रासादभञ्जन
सर्वजनं मे वशमानय वशमानय श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षय आकर्षय शत्रून् मर्दय मर्दय मारय मारय चूर्णय चूर्णय खे खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया
प्रज्ञया मम कार्यसिद्धि कुरु कुरु मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा ।।
ॐ
ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् श्रीविचित्रवीरहनुमते
मम
सर्वशत्रून्
भस्मी कुरु कुरु हन हन हुं फट् स्वाहा ।।
एकादशशतवारं
जपित्वा सर्वशत्रून् वशमानयति नान्यथा इति ।।
।।
इति श्रीविचित्रवीरहनुमन्मालामन्त्रः
सम्पूर्णम्
।।
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Maaruthi Stotram Shathru Vasa Manthram
Pralaya kalanala prajwalanaya, Pratapa vajra dehaya, Anjani
Garbha sambhutaya,
prakata vikrama veera daitya danava yaksha rakshogana graha
bandhanaya
bhootagraha bandhanaya, pretagraha bandhanaya,
pisachagraha bandhanaya, sakini dakini graha bandhanaya
kakini kamini graham bandhanaya, brahmagraha bandhanaya
brahma rakshasa graha bandhanaya, choragraha bandhanaya
maareegraha bandhanaya
yehi yehi agacha agacha avesaya avesaya mama hrudaya
pravesaya pravesaya
sphura sphura prasphura prasphura satyam kathaya
vyaghramukha bandhana sarpamukha bandhana rajamukha bandhana
narimukha bandhana sabhamukha bandhana satrumukha bandhana
sarvamukha bandhana
lanka prasada bhanjana amukam may vasamanaya
kleem kleem kleem hreem sreem sreem rajanam vasamanaya
sreem hreem kleem streenam akarshaya akarshaya
satrunmardaya mardaya maraya maraya choornaya choornaya
khe khe sree Ramachandrajnaya mama karyasiddhim kuru kuru
om hram hreem hroom hraim hroum hra: phat swaha
Yeka dasa satha varam Japithwa
sarva shathroon vasamanayathi Nanyadha ithi
Maaruthi Stotram
Maaruthi Stotram Shathru Vasa Manthram Meaning:
Salutations to God, to the strangely valorous Hanuman, The
one who puts away the fire at time of deluge, One who was born to Anjana,
He who ties the valorous Rakshasas, devas, yakshas and
planets, He who ties devils, He who ties ghosts, He who ties evil spirits, He
who ties the female evil spirits called Sakini and dakini, He who ties the evil
spirits called Kakini and Kamini, , He who ties Lord Brahma, He who ties the
Brahma Rakshas, He who ties thieves, he who ties deceitful asuras like
Mareecha.
Here, here, come, come, spread, spread, enter, enter my
heart
Sphum, Sphum, Manifest, manifest
He who ties the face of tiger, He who ties the face of a
serpent, He who ties the face of a king, He who ties the face of a woman, He
who ties the face of an audience, He who ties the face of the enemy, He who
ties the face of every one,
He who put an end to happiness of Lanka, please come under
my control, Kleem, kleem, kleem, Hreem, sreem sreem, make the kings under my
control,
Sreem hreem kleem attract, attract women, beat, beat my
enemies, kill, kill them, powder, powder them
Hey, hey follow the orders of God Ramachandra and make my
efforts succeed, succeed
If this is chanted One thousand one times, all enemies will
come under our control.
विचित्र
वीर हनुमान माला मंत्र
विनियोगः
ॐ
अस्य श्रीविचित्रवीरहनुमन्मालामंत्रस्य
श्रीरामचन्द्रो
भगवानऋषिः
अनुष्टुप
छन्दः श्रीविचित्रवीरहनुमान
देवता ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे
माला
मंत्र जपे विनियोगः |
ऋष्यादिन्यासन्यासः
ॐ
श्रीरामचन्द्रो
भगवान् ऋषये नमः शिरसि |
अनुष्टुपछन्दसे
नमः मुखे |
श्रीविचित्रवीर
हनुमान देवतायै नमः हृदि |
ममाभीष्ट
सिध्यर्थे मालमन्त्र जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे |
षडङ्गन्यासः
ॐ
ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः |
ॐ
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः |
ॐ
ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः |
ॐ
ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः |
ॐ
ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः |
ॐ
ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां
नमः |
ॐ
ह्रां हृदयाय नमः |
ॐ
ह्रीं शिरसे स्वाहा |
ॐ
ह्रूं शिखायै वौषट |
ॐ
ह्रैं कवचाय हुम् |
ॐ
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट |
ॐ
ह्रः अस्त्राय फट |
ध्यानं
वामे
करे वैरवहं वहन्तं शैलं परे श्रृंखलमालयाढ़यम
|
दधानमाध्मातसुवर्णवर्णं
भजे ज्वलत्कुण्डल माँजनेयम ||
माला
मंत्रः
ॐ
नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते
प्रलयकालानलप्रभाज्वलत्प्रतापवज्रदेहाय
|
अञ्जनीगर्भसम्भूताय
|
प्रकटविक्रमवीरदैत्यदानवयक्षराक्षसग्रहबन्धनाय
भूतग्रहप्रेतग्रहपिशाचग्रहशाकिनीग्रहडाकिनीग्रह
काकिनीग्रहकामिनीग्रह
ब्रह्मग्रहब्रह्मराक्षसग्रह
चोरग्रहबन्धनाय
|
एहि एहि |
आगच्छागच्छ | आवेशयावेशय |
मम
हृदयँ प्रवेशय प्रवेशय |
स्फुर स्फुर | प्रस्फुर प्रस्फुर |
सत्यं
कथय कथय |
व्याघ्रमुखं
बन्धय बन्धय |
सर्पमुखं
बन्धय बन्धय |
राजमुखं
बन्धय बन्धय |
सभामुखं बन्धय बन्धय |
शत्रुमुखं
बन्धय बन्धय |
सर्वमुखं
बन्धय बन्धय |
लङ्काप्रासादभञ्जन
सर्वजनं में वशमानय वशमानय
श्रीं
ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षय
आकर्षय
शत्रून्मर्दय
मर्दय
मारय
मारय |
चूर्णय
चूर्णय |
खे
खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया
प्रज्ञया मम कार्यसिद्धि कुरु कुरु
मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा ||
ॐ
ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट्
विचित्रवीरहनुमते
मम सर्वशत्रून् भस्मीकुरु कुरु |
हन
हन हुं फट् स्वाहा
|
( एकादशशतवारं जपित्वा सर्वशत्रून वशमानयति नान्यथा इति )
|| इति श्रीविचित्रवीर
हनुमन्माला
मंत्र सम्पूर्णं ||
हनुमान वायु गमन सिद्धि साधना
कहा जाता है कि इस साधना को करने से साधक में बहुत सारी अलौकिक सिद्धियां दिव्य शक्तियां आ जाती हैं, लेकिन इस साधना को विशेष रूप से वायु गमन सिद्धि प्राप्ति करने के लिए किया जाता है। इस साधना में हनुमान जी के विचित्र वीर! स्वरूप की पूजा की जाती है जो पंचमुखी हनुमान जी हैं। यह एक बहुत ही दुर्लभ और लुप्त प्राय साधना की श्रेणी में आती है। क्योंकि यह बहुत ही दुर्लभ और लुप्तप्राय साधना है। इस साधना को सफलतापूर्वक कर लेने वाला साधक बहुत ही अधिक शक्तिशाली हो जाता है। इस हनुमान वायु गमन, सिद्धि के नियम और विधि के बारे में आपको बताता हूं। इस साधना के नियम और विधि कुछ इस प्रकार से हैं।
हनुमान साधना सिर्फ और सिर्फ हनुमान जयंती, रामनवमी, सीता जयंती, नरसिंह जयंती और दिवाली के दिन से शुरू की जा सकती है। इस साधना को हनुमान! जी के शक्ति पीठ पर या फिर बहुत ही पुराने और बड़ी महत्व रखने वाले विशेष हनुमान मंदिर में किया जाता है। इस साधना को घर पर नहीं किया जा सकता इस साधना को सिर्फ! गुरु के निर्देश में रहकर ही किया जाता है। सबसे पहले इसी प्रकार के हनुमान शक्तिपीठ या ऐसे ही किसी पुराने बड़े महत्त्व रखने वाले हनुमान मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त में ऊपर दिए गए शुभ दिन का चयन करके वहां जाना चाहिए और सर्वप्रथम गुरु, पूजन और गणेश पूजन करना होता है। उसके बाद त्रिदेव की पूजा करनी है और फिर अंत में सूर्य देव की पूजा करनी है। यह सब करते समय साधक का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
इतना हो जाने के बाद साधक को रुद्राभिषेक करना है और हनुमान मूल मंत्र, हनुमान, मूल मंत्र माला या फिर रुद्र सूक्त का पाठ करते हुए साधक को एक पीतल से बनी हुई प्राण प्रतिष्ठित हनुमान जी की मूर्ति का अभिषेक करना है। उसके बाद साधक को भगवान शिव, हनुमान जी से सफलता के लिए आशीर्वाद मांगना है। साधक को इस साधना में सिर्फ और सिर्फ लाल, सफेद और पीले रंग के वस्त्र ही पहनने हैं और इसके अतिरिक्त किसी अन्य रंग का प्रयोग वर्जित है। लेकिन लाल रंग का वस्त्र साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। यह सब हो जाने के बाद साधक को रात के समय लाल वस्त्र पहन कर फिर से उसी स्थान पर जाना है और ब्रम्हचर्य का पूर्ण रुप से पालन करना आवश्यक है। अब साधक को उत्तर पूर्व की ओर मुख करके बैठना है और अपने हाथ में एक संस्कारित रक्त चंदन की माला लेकर इस विचित्र वीर हनुमान माला मंत्र का पांच माला जाप करना है और इस साधना को लगातार 41 दिनों तक करना होता है।
साधक को प्रतिदिन कम से कम 4 घंटे या उससे ज्यादा मंत्र जाप करना अनिवार्य होता है क्योंकि इस मंत्र की एक माला करने में साधक को लगभग एक घंटा लग जाता है। जो भी संकल्प इस साधना में लिया जाता है वह पूर्ण रुप से संस्कृत में होना चाहिए। अगर किसी को संकल्प लेना नहीं आता है तो वह मंदिर के पुजारी से संपर्क कर सकता है। विचित्र वीर हनुमान माला मंत्र इस प्रकार से है।
मन्त्र :-
ॐ नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते प्रलयकालानलप्रभाज्वलत्प्रतापवज्रदेहाय अञ्जनीगर्भसम्भूताय प्रकटविक्रमवीरदैत्य -
दानवयक्षराक्षसग्रहबन्धनाय भूतग्रह -
प्रेतग्रहपिशाचग्रहशाकिनीग्रहडाकिनीग्रह -
काकिनीग्रहकामिनीग्रहब्रह्मग्रहब्रह्मराक्षसग्रह -
चोरग्रहबन्धनाय एहि एहि आगच्छागच्छ -
आवेशयावेशय मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर सत्यं कथय कथय व्याघ्रमुखं बन्धय बन्धय सर्पमुखं बन्धय बन्धय राजमुखं बन्धय बन्धय सभामुखं बन्धय बन्धय शत्रुमुखं बन्धय बन्धय सर्वमुखं बन्धय बन्धय लङ्काप्रासादभञ्जन सर्वजनं मे वशमानय वशमानय
श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षय आकर्षय शत्रून् मर्दय मर्दय मारय मारय चूर्णय चूर्णय खे खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया
प्रज्ञया मम कार्यसिद्धि कुरु कुरु मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा ॥
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् श्रीविचित्रवीरहनुमते मम सर्वशत्रून् भस्मी कुरु कुरु हन हन हुं फट् स्वाहा ॥
इस प्रकार इस मंत्र को आपको पूरा पढ़ना है इस पूरे मंत्र को पढ़ने के बाद में। अब इस साधना को करते समय साधक को ऐसा लग सकता है कि वह हवा में उड़ रहा है या उसका शरीर बहुत ही हल्का हो गया है। इस तरह से बहुत सारे अनोखे एवं असाधारण अनुभव होने लगते हैं। अगर ऐसा होता है तो साधक को डरना नहीं चाहिए और पूर्ण एकाग्रता के साथ मंत्र जाप करते रहना चाहिए। साधक को 41 दिन तक केवल केला, अनार, सेब, कच्चा दूध के अलावा कुछ नहीं खाना है। इस साधना से साधक को चित्र अभिज्ञान सिद्धि, अपरा जय सिद्धि,दूरदर्शन सिद्धि, दूर श्रवण सिद्धि, जल गमन सिद्धि, वायु गमन सिद्धि, दूर दर्शन सिद्धि एवं अन्य अलौकिक सिद्धियां और दिव्य शक्तियां प्राप्त होने लगती हैं। इस साधना को करते वक्त सदैव आध्यात्मिक स्तर ऊंचा होना चाहिए। हनुमान जी पर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास भी होना चाहिए। अगर साधक को एक बार में सफलता ना मिले तो साधक हो बार-बार इस साधना को प्रत्यक्ष करते रहना चाहिए।
साधना में सफलता मिलना यानी कि हमारी तरफ से सफल होना सिर्फ और सिर्फ हनुमान जी के हाथ में ही होता है जो नए साधक हैं। वह अगर इस साधना को करते हैं तो उन्हें हनुमान जी के सपने मे दर्शन होते हैं और अनेक प्रकार के अनुभव भी होते हैं। लेकिन जिन साधकों का आध्यात्मिक स्तर अत्यंत ऊंचा होता है, उन्हें इस दिव्य साधना के माध्यम से निश्चित रूप से वायु गमन सिद्धि की प्राप्ति होती है।
संदेश – यहां पर इन्होंने हनुमान वायु गमन सिद्धि के बारे में बताया है। जब भी इस तरह की कोई साधना करें तो पूरी तरह से एकाग्र चित्त होकर। भगवान हनुमान में पूरा विश्वास रखते हुए अपने अंतरात्मा में किसी अन्य वस्तु का विचार ना करते हुए ही करनी चाहिए और ऐसी साधनाओ में अगर आपको क्रोध आता है तो अपने क्रोध को काबू करने के लिए सभी प्रकार के प्रयोजन करने आवश्यक होते हैं। क्योंकि जब भी आप हनुमान साधना करते हैं, आपके अंदर क्रोध का भाव बढ़ जाता है। इससे मुक्त होना अति आवश्यक है अन्यथा आपकी साधना में आपको सफलता प्राप्त नहीं होती है।
इसके अलावा हनुमान जी की साधना विषयक जितने भी नियम है उन सब का आपको पालन करना अनिवार्य होता है और साथ ही साथ हवन अवश्य करें। तभी आपकी साधना का फल आपको प्राप्त होगा। वरना आपकी साधना मे सिद्धि प्राप्ति नहीं होती है और भौतिक! जितने भी सुख होते हैं, वह नहीं मिलते। इसलिए जब भी साधना करें उसका दशांश हवन अनिवार्य रूप से करें। यहां पर भी हनुमान जी की साधना में आपको एकांत शुचिता और ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना अनिवार्य है। यह थी हनुमान साधना वायु गमन सिद्धि।
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The Himalayan Collections HC Asta
Dhatu/8 Metals Brass 5 Faced Hanuman Ji/Panch Mukhi Bajrang Bali Idol to
Protect from Shani and All Kind of Negative Energy (8)
Sri Panchmukhi Hanuman is one of the most important upasana deity of our Guru Parampara. Sri Panchamukhi Hanuman refers to the five faced Hanuman. According to the scriptures, Lord Hanuman assumed this form to slay Mahiravana, brother of Ravana. Mahiravana was a sorcerer and an ardent devotee of Goddess Mahamaya. Instigated by Ravana, Mahiravana took Lord Rama and his brother Lakshmana to Paathaala Loka (the nether-world) and was tempted to sacrifice them to Goddess Mahamaya. To save the divine brothers, Lord Hanuman had to stub out five lamps burning in different directions simultaneously. He, therefore, assumed the Panchmukhi form to win this task. Inspite of rapid strides in technology, there is a growing insecurity for the average human being, both at emotional and physical levels. Sri Panchmukhi Hanuman Swami promises this security to all devotees.
Every Face of Sri Panchmukhi Hanuman has significance —
Sri Hanuman faces East. He grants purity of mind and success.
The Narasimha faces South. He grants victory and fearlessness.
The West facing Garuda removes black magic and poisons.
The North facing Varaha, showers prosperity, wealth.
The Hayagriva mukha faces the Sky. However, to make it visible to us, it is usually tilted and shown above Hanuman’s face. Hayagriva gives knowledge and good children.
Panchmukhi Hanuman Dhyana Mantra
“Panchasyachutamaneka vichitra veeryam |
Sri shanka chakra ramaniya bhujagra desam ||
Peethambaram makara kundala noopurangam |
Dhyayethitam kapivaram hruthi bhvayami” ||
Meaning :
The face towards the East is Sri Hanuman Mukha in its original form. This face removes all blemishes of sin and confers purity of mind (Chitta Suddhi).
Sri Karala Ugravira Narasimha Swami, facing the South, removes fear of enemies and confers victory.
The face facing the west is that of Lord Shri Mahavira Garuda and this face drives away evil spells, black magic influences etc and removes all poisonous effects in one’s body.
Sri Lakshmi Varaha murthi facing the North, wards off the troubles caused by bad influences of the planets and confers all prosperity – Ashta Aishwarya.
The Urdhva Mukha facing upwards of Sri Hayagriva Swami confers knowledge, victory, good wife and progeny.’
As the following mantra indicates, Lord Hanuman provides his devotees with knowledge, power, courage, and health.
“Budhdirbalam yasho dhairyam nirbhayatvam arogata
Ajaadtyam vakpatutvam cha hanumat smaranadbhavet”
Panchmukhi Hanuman Stuti
The Panchmukhi Hanuman Stuti is a potent stotra meant to praise each of the five forms. This stotra helps to alleviate troubles and keep evil forces away. It serves as a protection to devotees who chant with utmost faith.
“
Sakala shatru samhaarnaaya swaaha”
Meaning : ‘The east facing form of Lord Hanuman protects devotees from problems caused by enemies. He provides happiness and fulfills wishes.’
“
Karaala vadanaaya Narasimhaaya sakala bhoota praeta pramadanaaya swaaha”
Meaning : The south facing form of Lord Narasimha removes all types of fear, sins, unfavorable influences of spirits and demons, and fulfills our wishes.
“
Garudaaya sakala visha haranaaya swaaha”
Meaning : The west facing form of Lord Garuda removes all types of ailments, negativities, black magic, poison, and fear.
“
Aadivarahaaya sakala sampatkaraaya swaaha”
Meaning : The north facing form of Lord Varaha provides the ashta aishwarya (eight different forms of wealth).
“
Hayagrivaaya sakala jana vasheekaranaaya swaaha”
Meaning : The upwards facing form of Lord Hayagriva helps devotees attract the goodwill of people. The words of His devotees turn into reality. He bestows them with advancement in seeking knowledge, good company of friends, intelligence, good children, and salvation.
Panchmukhi Hanuman Gayatri Mantra
Panchmukhi Hanuman Stotra
The ‘Shri Panchmukhi Hanuman Gayatri’ can be chanted to overcome obstacles in life.
“
Tanno Hanumath Prachodayaath”
The five forms namely Hanuman, Narasimha, Garuda, Varaha, and Hayagriva can also be invoked individually by chanting specific Gayatri mantras.
Hanuman Gayatri :
“Shree aanjaneyaya vidmahe mahabalaaya dhimahi tanno Kapi prachodayat”
Narasimha Gayatri :
“Vajranakhaaya vidmahe tikshanadamshtraya dhimahi tanno Narasimha prachodayat”
Garuda Gayatri :
“Tatpurushaaya vidmahe suvarna pakshaya dhimahi tanno Garudah prachodayat”
Varaha Gayatri :
“
Hayagriva Gayatri :
“
If one is troubled by evil influences, and want to seek protection from fears, enemies, and the occult, Panchmukhi Hanuman is the God for him. He protects those who seek refuge in Him.
Panchmukhi Hanuman Mantra for Protection
“
Hanuman is often found in temples applied with Sindhoor. Sindhoor (Vermillion) is a modified version of saffron made into a paste. The color morphs into a deep red which symbolizes the immense strength of Lord Hanuman and is also the color of boldness. The color red once again signifies the muladhara chakra (the very first chakra in the human body ) and it is the basis of the survival instinct and deep rooted fear complexes. Gazing at this deep red relieves some of the fears and hence Lord Hanuman is painted a deep red colour in temples.
Panchmukhi Hanuman is worshipped in the context of energy for the following reasons :
To overcome distressing energy : To overcome problems due to spirits, black magic, ancestors’ subtle bodies, suffering due to Shani, etc.
To control pleasant energy : If there is any obstacle in the pathway of the activated kundalini (spiritual energy) then to overcome it and channelize it appropriately.
Panchmukhi Hanuman Kavach*पञ्चमुखविराट् हनुमान्देवता ।
A Kavacham is addressed to this fierce form of Hanuman. It is not a Stotra in the normal sense of the word and instead it gives large amount of Tantric powers aimed at protection. Some people believe that this sloka should not be recited but used to worship the Five Faced Hanumanji.
It is written at the end of the Panchmukhi stotra that was taught by Rama to Sita as per her request. However, the first few lines show that this is a version taught by Garuda, where he mentions that it was created by the Lord of Lords.
श्रीगणेशाय नमः ।
ॐ श्री पञ्चवदनायाञ्जनेयाय नमः । ॐ अस्य श्री
पञ्चमुखहनुमन्मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः ।
गायत्रीछन्दः । पञ्चमुखविराट् हनुमान्देवता । ह्रीं बीजं ।
श्रीं शक्तिः । क्रौं कीलकं । क्रूं कवचं । क्रैं अस्त्राय फट् ।
इति दिग्बन्धः ।
श्री गरुड उवाच ।
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणुसर्वाङ्गसुन्दरि ।
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियम् ॥ १॥
पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम् ।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम्
॥ २॥
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम् ।
दन्ष्ट्राकरालवदनं भृकुटीकुटिलेक्षणम् ॥ ३॥
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् ।
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥ ४॥
पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् ॥
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम् ॥ ५॥
उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् ।
पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥ ६॥
ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् ।
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥ ७॥
जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम् ।
ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥ ८॥
खड्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् ।
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥ ९॥
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम् ।
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम् ॥ १०॥
प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् ।
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ॥ ११॥
सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम् ।
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं
शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम ।
पीताम्बरादिमुकुटैरूपशोभिताङ्गं
पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ॥ १२॥
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम् ।
शत्रु संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर ॥ १३॥
ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं
परिलिख्यति लिख्यति वामतले ।
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं
यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता ॥ १४॥
ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय
सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय
नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय
सकलविषहराय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोत्तरमुखायादिवराहाय
सकलसम्पत्कराय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय
सकलजनवशङ्कराय स्वाहा ।
ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमन्मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र
ऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः । पञ्चमुखवीरहनुमान् देवता ।
हनुमानिति बीजम् । वायुपुत्र इति शक्तिः । अञ्जनीसुत इति कीलकम् ।
श्रीरामदूतहनुमत्प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
इति ऋष्यादिकं विन्यसेत् ।
ॐ अञ्जनीसुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ वायुपुत्राय मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ अग्निगर्भाय अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ पञ्चमुखहनुमते करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
इति करन्यासः ।
ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा ।
ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् ।
ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम् ।
ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ पञ्चमुखहनुमते अस्त्राय फट् ।
पञ्चमुखहनुमते स्वाहा ।
इति दिग्बन्धः ।
अथ ध्यानम् ।
वन्दे वानरनारसिंहखगराट्क्रोडाश्ववक्त्रान्वितं
दिव्यालङ्करणं त्रिपञ्चनयनं देदीप्यमानं रुचा ।
हस्ताब्जैरसिखेटपुस्तकसुधाकुम्भाङ्कुशाद्रिं
हलं
खट्वाङ्गं फणिभूरुहं दशभुजं सर्वारिवीरापहम् ।
अथ मन्त्रः ।
ॐ श्रीरामदूतायाञ्जनेयाय वायुपुत्राय महाबलपराक्रमाय
सीतादुःखनिवारणाय लङ्कादहनकारणाय महाबलप्रचण्डाय
फाल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्माण्डविश्वरूपाय
सप्तसमुद्रनिर्लङ्घनाय पिङ्गलनयनायामितविक्रमाय
सूर्यबिम्बफलसेवनाय दुष्टनिवारणाय दृष्टिनिरालङ्कृताय
सञ्जीविनीसञ्जीविताङ्गदलक्ष्मणमहाकपिसैन्यप्राणदाय
दशकण्ठविध्वंसनाय रामेष्टाय महाफाल्गुनसखाय सीतासहित-
रामवरप्रदाय षट्प्रयोगागमपञ्चमुखवीरहनुमन्मन्त्रजपे विनियोगः ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय बंबंबंबंबं वौषट् स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय फंफंफंफंफं फट् स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय खेंखेंखेंखेंखें मारणाय स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय लुंलुंलुंलुंलुं आकर्षितसकलसम्पत्कराय स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय धंधंधंधंधं शत्रुस्तम्भनाय स्वाहा ।
ॐ टंटंटंटंटं कूर्ममूर्तये पञ्चमुखवीरहनुमते
परयन्त्रपरतन्त्रोच्चाटनाय स्वाहा ।
ॐ कंखंगंघंङं चंछंजंझंञं टंठंडंढंणं
तंथंदंधंनं पंफंबंभंमं यंरंलंवं शंषंसंहं
ळंक्षं स्वाहा ।
इति दिग्बन्धः ।
ॐ पूर्वकपिमुखाय पञ्चमुखहनुमते टंटंटंटंटं
सकलशत्रुसंहरणाय स्वाहा ।
ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा ।
ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पञ्चमुखहनुमते मंमंमंमंमं
सकलविषहराय स्वाहा ।
ॐ उत्तरमुखायादिवराहाय लंलंलंलंलं नृसिंहाय नीलकण्ठमूर्तये
पञ्चमुखहनुमते स्वाहा ।
ॐ उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुंरुंरुंरुंरुं रुद्रमूर्तये
सकलप्रयोजननिर्वाहकाय स्वाहा ।
ॐ अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय
श्रीरामचन्द्रकृपापादुकाय महावीर्यप्रमथनाय
ब्रह्माण्डनाथाय
कामदाय पञ्चमुखवीरहनुमते स्वाहा ।
भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षसशाकिनीडाकिन्यन्तरिक्षग्रह-
परयन्त्रपरतन्त्रोच्चटनाय स्वाहा ।
सकलप्रयोजननिर्वाहकाय पञ्चमुखवीरहनुमते
श्रीरामचन्द्रवरप्रसादाय जंजंजंजंजं स्वाहा ।
इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः ।
एकवारं जपेत्स्तोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् ॥ १५॥
द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् ।
त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं शुभम् ॥ १६॥
चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् ।
पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशङ्करम् ॥ १७॥
षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशङ्करम् ।
सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १८॥
अष्टवारं पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् ।
नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात् ॥ १९॥
दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् ।
रुद्रावृत्तिं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ॥ २०॥
निर्बलो रोगयुक्तश्च महाव्याध्यादिपीडितः ।
कवचस्मरणेनैव महाबलमवाप्नुयात् ॥ २१॥
॥ इति श्रीसुदर्शनसंहितायां श्रीरामचन्द्रसीताप्रोक्तं
श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥
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